क्या बंगाल में होगा प्रेसिडेंट रूल ?किन हालात में किसी राज्य में लगता है राष्ट्रपति शासन

अबतक इंडिया न्यूज 22 अप्रैल कोलकाता । बंगाल में मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद बीजेपी जोरशोर से राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर रही है. राज्यपाल ने भी कहा कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट केंद्र को भेज दी है. जानते हैं किन हालात में राष्ट्रपति शासन लगता है.
- बंगाल में मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद राष्ट्रपति शासन की मांग.
- राज्यपाल ने केंद्र को रिपोर्ट भेजी.
- संवैधानिक तंत्र फेल होने पर राष्ट्रपति शासन लगता है.
पश्चिम बंगाल में जिस तरह मुर्शिदाबाद में हिंसा हुई, उसके बाद वहां कानून-व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग हो रही है. आखिर वो कौन सी स्थितियां होती हैं जबकि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. वैसे भारत के संविधान में राष्ट्रपति शासन ऐसी व्यवस्था है, जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति द्वारा तब किया जाता है जबकि किसी राज्य में संवैधानिक मशीनरी पूरी तरह से नाकाम हो जाती है. पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद हिंसा और कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति के मद्देनजर वहां प्रेसीडेंट रूल की मांग होने लगी है.
विपक्ष पिछले काफी समय से बंगाल की कानून – व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठाता रहा है. अर्से से वहां ममता राज को अराजक बताते हुए बीजेपी राष्ट्रपति शासन की मांग भी करती रही है लेकिन इस बार मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा ने राज्य सरकार के सरकारी मशीनरी के कंट्रोल पर सवाल उठा दिए हैं.
सवाल – राष्ट्रपति शासन क्या होता है? संविधान में इसकी क्या व्यवस्था है?
– राष्ट्रपति शासन की स्थिति में किसी राज्य की निर्वाचित सरकार को भंग या निलंबित कर दिया जाता है. तब राज्य का प्रशासन केंद्र सरकार के पास आ जाता है. इसे संवैधानिक आपातकाल या कांस्टीट्यूशनल इमर्जेंसी भी कहा जाता है. इस दौरान राज्य का शासन राष्ट्रपति के माध्यम से चलता है. राज्यपाल के पास कार्यकारी अधिकार आ जाते हैं. राज्यपाल अफसरों की एक सलाहकार व्यवस्था बनाकर सरकार चलाता है. यह व्यवस्था भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 और अनुच्छेद 355 के तहत लागू की जाती है.
सवाल – इसे राष्ट्रपति शासन क्यों कहा जाता है?
– क्योंकि तब राज्य का कंट्रोल निर्वाचित मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद के बजाय भारत के राष्ट्रपति के पास चला जाता है. तब व्यावहारिक तौर पर केंद्र सरकार और राज्यपाल इसकी जिम्मेदारी संभालते हैं.
सवाल – किसी राज्य में किन हालात में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है?
– संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार, राष्ट्रपति शासन के लिए कुछ जरूरी स्थितियां होती हैं, अगर वो राज्य में लगातार नजर आने लगे तो इसे लागू किया जा सकता है,
– जब राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार शासन नहीं चला पा रही हो. यदि कानून-व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जाए या हालात बेकाबू हो जाएं. ऐसे में राज्य सरकार संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं करे.
– यदि कोई राज्य केंद्र सरकार के निर्देशों को लागू करने में विफल रहता है, खासकर अनुच्छेद 355 के तहत, जो केंद्र को राज्यों को आंतरिक अशांति और बाहरी खतरे से बचाने की जिम्मेदारी देता है.
– जब राज्य विधानसभा में कोई भी दल या गठबंधन स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर पाए और सरकार का गठन नहीं हो पाए.
– यदि राज्य सरकार दंगों, हिंसा या अन्य अशांति को नियंत्रित करने में नाकाम रहती है, जिससे संवैधानिक व्यवस्था खतरे में पड़ जाए.
सवाल – राष्ट्रपति शासन लगाने की प्रक्रिया क्या है? मतलब राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले से लेकर इस आदेश पर राष्ट्रपति के साइन तक क्या – क्या होता है?
– 1. राज्यपाल स्थिति का आकलन करके केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट भेजता है, जिसमें वह बताता है कि राज्य में संवैधानिक तंत्र फेल हो गया है.
2. केंद्रीय मंत्रिमंडल इस रिपोर्ट की समीक्षा करता है. राष्ट्रपति को शासन लागू करने की सलाह देता है.
3. इसके संबंधित जरूरी दस्तावेज गृह मंत्रालय द्वारा तैयार करके राष्ट्रपति के पास भेजे जाते हैं.
4. राष्ट्रपति, केंद्र की सलाह पर राष्ट्रपति शासन के दस्तावेज पर साइन करते हैं और इसकी घोषणा करते हैं.
5. घोषणा के दो महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से सामान्य बहुमत से अनुमोदन जरूरी है.
सवाल – किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन कितने दिनों के लिए लगाया जा सकता है?
– राष्ट्रपति शासन आमतौर पर छह महीने के लिए लागू होता है. इसे हर छह महीने में संसद के अनुमोदन से एक साल तक बढ़ाया जा सकता है. विशेष परिस्थितियों (जैसे राष्ट्रीय आपातकाल) में इसे और लंबा किया जा सकता है.
सवाल – भारत के किस राज्य में सबसे लंबा राष्ट्रपति शासन लग चुका है?
– भारत में सबसे लंबा राष्ट्रपति शासन जम्मू और कश्मीर में लगा था. ये 19 जनवरी 1990 से 9 अक्टूबर 1996 तक कुल 6 साल और 264 दिनों तक चला.
इसके बाद, पंजाब में सबसे लंबा राष्ट्रपति शासन लगा, जो 11 जून 1987 से 25 फरवरी 1992 तक करीब 4 साल और 259 दिनों तक चला. उत्तर प्रदेश में सबसे लंबा राष्ट्रपति शासन 25 फरवरी 1968 से 26 फरवरी 1969 तक चला था, जो 1 साल और 2 दिनों की अवधि थी. उत्तर प्रदेश में कुल 10 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है.
सवाल – बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग क्यों उठ रही है?
– पश्चिम बंगाल में हाल ही में मुर्शिदाबाद जिले में हुई हिंसा के बाद राष्ट्रपति शासन की मांग तेज हो गई है. इस हिंसा का कारण वक्फ कानून में संशोधन के खिलाफ प्रदर्शन बताया जा रहा है, जिसने उग्र रूप ले लिया. काफी हिंसा हुई. तीन लोगों की मौत हुई. कई लोग घायल हुए. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विश्व हिंदू परिषद (VHP) जैसे संगठनों का दावा है कि इस दौरान मुर्शिदाबाद में हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया. उनकी दुकानें लूटी गईं. घरों पर हमले हुए. बीजेपी का कहना है कि 400 से अधिक हिंदू परिवार डर के कारण मालदा में शरण लेने को मजबूर हुए.
बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया है कि ममता बनर्जी की सरकार हिंसा को कंट्रोल करने में फेल रही है. राज्य सरकार धार्मिक कट्टरपंथियों को संरक्षण दे रही है.
राज्य में विपक्षी दलों का कहना है कि बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए बंगाल में सक्रिय हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं. इन्हीं आधारों पर भाजपा और VHP ने राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राष्ट्रपति शासन की मांग की.
सवाल – क्या बंगाल के राज्यपाल ने मुर्शिदाबाद की घटना पर केंद्र सरकार को कोई रिपोर्ट भेजी है?
– हां, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के संबंध में केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट भेजने की बात कही है. 19 अप्रैल को मुर्शिदाबाद के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के बाद राज्यपाल ने मीडिया से कहा कि वे वहां की जमीनी स्थिति पर अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपेंगे. उन्होंने ये भी बताया कि उन्होंने प्रभावित लोगों से बात की. उनकी शिकायतें सुनी, जिसमें “बर्बर हमलों” की बात सामने आई.
सवाल – क्या बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करना इतना आसान है?
– नहीं, बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करना इतना आसान तो नहीं है. इसके लिए कई शर्तें पूरी होनी चाहिए. राज्यपाल की रिपोर्ट स्पष्ट होनी चाहिए. उन्हें साबित करना होगा कि राज्य में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से फेल हो चुका है. केंद्र सरकार को मानना होगा कि स्थिति इतनी गंभीर है कि राष्ट्रपति शासन के बिना समाधान संभव नहीं है. संसद में इसकी मंजूरी जरूरी है. अगर विपक्ष इसका विरोध करता है, तो यह प्रक्रिया जटिल हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी राष्ट्रपति शासन के दुरुपयोग पर सवाल उठाए हैं. उदाहरण के लिए, 1994 के एस.आर. बोम्मई मामले में कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रपति शासन केवल तभी लागू किया जा सकता है जब संवैधानिक विफलता का स्पष्ट सबूत हो. वैसे ममता बनर्जी ने हिंसा को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए हैं. कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर केंद्रीय अर्धसैनिक बल भी तैनात किए गए हैं. सरकार यह दावा कर सकती है कि स्थिति नियंत्रण में है.
सवाल -राष्ट्रपति शासन लागू होने पर क्या बदलता है?
– जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगता है तो कई तरह के बदलाव होते हैं.
– निर्वाचित मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद को भंग कर दिया जाता है
– राज्यपाल केंद्र की सलाह पर प्रशासन चलाता है
– राज्य की विधायी शक्तियां संसद को हस्तांतरित हो जाती हैं, जो राज्य के लिए कानून बना सकती है.
– राज्य का प्रशासन पूरी तरह केंद्र सरकार के अधीन आ जाता है।
सवाल – बंगाल में अगला कदम क्या हो सकता है, क्या वहां राष्ट्रपति शासन लगेगा?
– बंगाल में राष्ट्रपति शासन की संभावना कम लगती है, क्योंकि ममता बनर्जी की सरकार हिंसा को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय कदम उठा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने भी राष्ट्रपति शासन की मांग वाली याचिका पर सवाल उठाया है, कहा है कि वह राष्ट्रपति को परमादेश जारी नहीं कर सकता.- केंद्र सरकार को यह साबित करना होगा कि बंगाल में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है, जो एक जटिल प्रक्रिया है.हालांकि, अगर राज्यपाल की रिपोर्ट में गंभीर आरोप लगाए जाते हैं और केंद्र सरकार इसे आधार बनाती है, तो इसकी संभावना बढ़ सकती है.