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महंगाई काबू में लाने के लिए क्या है आरबीआई का रामबाण इलाज, कैसे करता है ये काम?

अबतक इंडिया न्यूज 19 अप्रैल ।  महंगाई जब सिर चढ़कर बोलने लगती है, तो आम आदमी की जेब पर सीधा असर पड़ता है. जरूरी चीजों से लेकर सेवाओं तक, सब कुछ महंगा हो जाता है. ऐसे हालात में देश की सेंट्रल बैंक — यानी भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) — एक अहम हथियार इस्तेमाल करती है: रेपो रेट. लेकिन ये रेपो रेट आखिर है क्या, और ये महंगाई को कैसे कंट्रोल करता है? चलिए इसे आसान भाषा में समझते हैं.

रेपो रेट वह ब्याज दर होती है जिस पर RBI देश के बैंकों को कम समय के लिए लोन देता है. जब बैंक को पैसों की ज़रूरत होती है, तो वे अपने सरकारी बॉन्ड गिरवी रखकर RBI से पैसे उधार लेते हैं — और उस पर जो ब्याज लगता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं.

जब रेपो रेट बढ़ता है, तो क्या होता है?
जब RBI रेपो रेट बढ़ाता है, तो बैंकों के लिए RBI से लोन लेना महंगा हो जाता है. इससे बैंकों के पास कम पैसा आता है और वे आम लोगों और बिजनेस को भी महंगे ब्याज दर पर लोन देते हैं. लोन महंगा होने से लोग उधार लेना कम करते हैं और खर्च घटाते हैं. जैसे-जैसे बाज़ार में पैसे की आवाजाही (liquidity) कम होती है, मांग घटती है और चीज़ों की कीमतों पर दबाव कम पड़ता है. इस तरह रेपो रेट बढ़ाना महंगाई को थामने का एक तरीका बनता है.

और जब रेपो रेट घटता है?
इसके उलट, अगर RBI रेपो रेट घटाता है, तो बैंक सस्ते में लोन लेते हैं और फिर ग्राहकों को भी कम ब्याज पर लोन देते हैं. इससे बाजार में पैसे की मात्रा बढ़ती है, लोग ज्यादा खरीदारी करते हैं, कंपनियां विस्तार करती हैं, और अर्थव्यवस्था में ग्रोथ आती है. लेकिन अगर जरूरत से ज्यादा पैसा बाजार में घूमने लगे, तो वही स्थिति महंगाई को बढ़ा सकती है.

क्यों जरूरी है बैलेंस?
RBI का काम है महंगाई को कंट्रोल में रखते हुए आर्थिक विकास को भी सपोर्ट करना. इसलिए वह रेपो रेट को समय-समय पर बदलती रहती है — कभी बढ़ाकर खर्च घटाने के लिए, तो कभी घटाकर ग्रोथ बढ़ाने के लिए. यह एक तरह से गाड़ी की ब्रेक और एक्सेलरेटर जैसा है — जब रफ्तार बढ़ती है और खतरा होता है (महंगाई), तो ब्रेक (रेपो रेट बढ़ाना) लगाना ज़रूरी होता है. जब रफ्तार कम हो और आगे बढ़ना हो (कमज़ोर ग्रोथ), तो एक्सेलरेटर (रेपो रेट में कटौती) देना पड़ता है.

रेपो रेट, RBI के हाथ में एक ऐसा नियंत्रण यंत्र है, जिससे वह देश की अर्थव्यवस्था को संतुलन में रखती है. यह महंगाई के समय लोगों के खर्च को नियंत्रित करता है और ज़रूरत पड़ने पर अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद करता है. इसलिए जब भी आप सुनें कि RBI ने रेपो रेट बढ़ाया है, तो समझ लीजिए कि महंगाई को काबू में लाने की कोशिश की जा रही है.

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