
बीकानेर शहर व देहात में भाजपा के मंडल से लेकर जिलाध्यक्ष पद को लेकर चल रही खींचतान के बीच नियुक्तियों को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। लेकिन शिकायतों के चलते भाजपा में अंदुरुनी कलह भी उभर कर सामने आने लगी है। विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मंडल अध्यक्षों पर लगी अंतरिम रोक के पीछे भी बड़ी वजह यही सामने आई है। जिलाध्यक्ष पद की नियुक्ति में देरी का कारण भी यहीं बताया जा रहा है। हालांकि सोशल मीडिया पर समर्थक अपने अपने चेहतों को पद बांटने में लगे है। किन्तु भाजपा में संगठनात्मक नियुक्तियों में कही न कही पार्टी का संविधान भी आड़े आ रहा है। जिसके आधार पर शिकायतकर्ता के दावे भी मजबूत हो गये है। बताया जा रहा है कि जिन पांच मंडलों की नियुक्ति पर रोक लगाई गई है। इनमें से चार मंडल पदाधिकारी,सक्रिय सदस्य या पार्टी में संगठन स्तर पर पदाधिकारी नहीं रहे है। जबकि एक शहर में संगठन स्तर पर पदाधिकारी नहीं रहे।
ये है पार्टी नियुक्ति को लेकर कानून
बीकानेर जिला देहात संगठन प्रभारी जगतनारायण जोशी के अनुसार भाजपा में नियुक्ति को लेकर उम्र के साथ साथ कुछ नियम कायदे तय किये है। इसमें मंडल अध्यक्षों के लिये जहां 35 से 45 वर्ष तथा जिलाध्यक्ष के लिये 45 से 60 वर्ष तक की उम्र तय की है। आयु सीमा निर्धारण की बात करें तो 1979 से आयु गणना की जायेगी। महिलाओ के लिए दो वर्ष की छूट का प्रावधान है।वहीं इनकी नियुक्ति में अध्यक्षों को संगठन स्तर पर पदाधिकारी होना,पार्टी का सक्रिय सदस्य होना भी जरूरी है। ऐसे कार्यकर्ता को भी अध्यक्ष का दायित्व नहीं दिया जा सकता जो कभी भी पार्टी से निष्काषित रहा हो, पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहा हो, पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनाव में पार्टी छोड़ कर चले गए व पार्टी संविधान द्वारा तय मापदंडो पूरा नहीं करता हो।
रानीबाजार,नयाशहर,पुराना शहर मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति पर रोक की वजह पार्टी में संगठन स्तर पर पदाधिकारी नहीं होना बताया जा रहा है। जबकि जस्सूसर गेट मंडल अध्यक्ष पार्टी के तय उम्र से ज्यादा होना बताया गया है। तो जूनागढ़ मंडल अध्यक्ष की नियुक्ति पर रोक का कारण देहात का होना सामने आ रहा है। किन्तु इसकी बड़ी वजह पार्टी नेताओं की खींचतान है।
आपसी अदावत बनी बड़ी अड़चन
अंदरखाने की बात तो यह है कि जिला स्तर पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में आपसी अदावत भी बड़ा कारण है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोर पकडऩे लगी है कि कुछ दिन पहले पूर्व काबिना मंत्री देवीसिंह भाटी द्वारा संगठन चुनाव प्रभारी दशरथ सिंह की कार्यप्रणाली पर उठाएं गये सवाल और केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल से उनकी अदावत भी एक बड़ी वजह है। जिसके कारण मंडल अध्यक्ष व शहर-देहात अध्यक्षों की नियुक्ति में देरी हो रही है। इतना ही नहीं कुछ राजनीतिक जानकार यह भी कहते सुने जा सकते है कि स्थानीय विधायक अपने चेहतों पर संगठन में अधिकाधिक जगह दिलाने के कारण भी यह खींचतान ज्यादा बढ़ गई है।
मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद ही बन सकता है जिलाध्यक्ष
सूत्र बताते है कि पार्टी जिलाध्यक्षों की घोषणा मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद ही संभव है। हालांकि इसमें भी कई दावेदार सामने आए है। परन्तु कई दावेदार पार्टी संविधान के चलते निपटते नजर आ रहे है।किसी जमीनी स्तर के पार्टी हार्ड वर्कर का कोई चौंकाने वाला नाम भी सामने आ सकता है। क्यूंकि पार्टी खेमेबाजी व लोबिंग के इतर सर्वमान्य उम्मीदवार की खोज में जुटी है। ऐसे में अगर पार्टी महिला को जिलाध्यक्ष बनाने पर विचार कर रही है तो कोई चौकाने वाला नाम भी सामने आ सकता है।किसी भी संगठन के लिए समर्पित कार्यकर्त्ता ही उसकी आत्मा होती है। ऐसे में अपने राजनितिक आकाओ की खेमेबंदी व लोबिंग के भरोसे बैठे शिष्यों कों जोर का झटका लग सकता है।
देहात व शहर जिला प्रभारियों की अग्निपरीक्षा
बीकानेर देहात व शहर जिलाध्यक्ष चुनाव कों लेकर दोनों जिला प्रभारियों के समक्ष निष्पक्षता की अग्निपरीक्षा है। केंद्रीय मंत्री मेघवाल, मंत्री गोदारा सहित विधायकों कों साधकर सर्वसम्मति से जिलाध्यक्ष की घोषणा करना अत्यंत दुष्कर कार्य है। देहात की बात करें तो जगतनारायण जोशी ने जमीनी स्तर पर अपना टास्क बखूबी किया। बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर तहसील व जिला स्तर तक के कार्यकर्ताओं के मन की बात टटोली है। संगठन के कार्यों में बतौर प्रभारी अबतक निष्पक्षता के दामन पर आंच नहीं आई है। वहीँ शहर प्रभारी दशरथ सिंह भी संगठक के तौर पर बेहद मंजे हुए नेता है। लेकिन पूर्व मंत्री भाटी द्वारा उठाए गए सवालों से उनकी निष्पक्षता सवालों के घेरे में है। ऐसे में शहर जिलाध्यक्ष का चुनाव उनके लिए अग्निपरिक्ष से कम नहीं है। केंद्रीय मंत्री,विधायक, पूर्व जिला अध्यक्षों के साथ साथ जिला स्तरीय नेताओं कों साधकर सर्वसम्मति बनाना मुश्किल ही नहीं बेहद चुनौतिपूर्ण। क्योंकि देहात के वनिस्पत शहर में दावेदारों की संख्या भी अधिक है। शहर के पांच मंडल अध्यक्षों की घोषणा पर लगी रोक भी उनकी निष्पक्षता के लिए बड़ी चुनौती है।