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‘पाकिस्तानी जासूस’ अब बनेगा जज, देशद्रोह और जेल का दंश झेलने वाले शख्स के संघर्ष की कहानी पूरी फिल्मी है

अबतक इंडिया न्यूज 14 दिसम्बर । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछले करीब 8 साल से जज के तौर पर नियुक्ति की न्यायिक लड़ाई लड़ रहे शख्स के हक में फैसला सुनाया है। कानपुर निवासी प्रदीप कुमार को चयन के बावजूद नियुक्ति देने से मना कर दिया गया था। इसकी वजह एक पाकिस्तानी जासूस के तौर पर उनके खिलाफ लगे संगीन इल्जाम थे। कई साल तक जेल की सजा और देशद्रोह का दंश झेलने वाले प्रदीप अब 46 साल के हो चुके हैं और पिछले 22 साल से वह जिंदगी के तोड़ देने वाले संघर्ष के जूझ रहे हैं। अब उनके न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठने का रास्ता साफ है। यह कहानी पूरी फिल्मी है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की ज‌स्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की पीठ ने प्रदीप कुमार को जज (HJS कैडर) के रूप में नियुक्त करने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा कि राज्य के पास ऐसा कोई भी सबूत मौजूद नहीं है, जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि याचिकाकर्ता ने किसी विदेशी खुफिया एजेंसी के लिए काम किया हो। मुकदमे में बरी होना सम्मानजनक था।

22 साल पहले लगा था जासूसी का आरोप

याचिकाकर्ता प्रदीप कुमार ने कानून की पढ़ाई की है। LLB ग्रेजुएट प्रदीप पर साल 2002 में पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया गया था। तब वह 24 साल के थे। लंबे मुकदमे के बाद 2014 में कानपुर की जिला अदालत ने उन्हें बरी कर दिया गया था। वह जेल में भी रहे। बरी होने के 2 साल बाद साल 2016 में इन्होंने यूपी उच्च न्यायिक सेवा की परीक्षा दी और 27वां पद हासिल किया था। लेकिन जॉइनिंग लेटर देने से इनकार किया था।

2016 से चल रही नियुक्ति की लड़ाई

खंडपीठ के समक्ष अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिवक्ता ने तर्क दिया था कि याची पर 2002 में दुश्मन देश पाकिस्तान के लिए जासूस के रूप में काम करने के गंभीर आरोप थे और उसे राज्य सरकार STF और सैन्य खुफिया (Military Intelligence) के संयुक्त अभियान में गिरफ्तार किया था। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यद्यपि आपराधिक मुकदमे विफल हो गए, फिर भी राज्य सरकार के पास यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त सामग्री थी कि याची के चरित्र को प्रमाणित नहीं किया जा सकता है। और इस प्रकार वह नियुक्ति के लिए पूरी तरह से अयोग्य था।

  आखिर ऐसा किया क्या था?

रिपोर्ट में कथित तौर पर कहा गया था कि लॉ ग्रेजुएट प्रदीप पैसे हासिल करने के आसान तरीकों को तलाश करने के चलते फैजान इलाही नामक शख्स के कॉन्टैक्ट में आए थे। फैजान एक फोटोस्टेट की दुकान चलाता था और उसने कथित तौर पर प्रदीप से पैसे के बदले टेलीफोन पर कुछ जानकारी देने करने के लिए कहा था। आरोप लगाया गया कि कुमार ने पैसे के बदले में कानपुर की संवेदनशील जानकारी दी।

जज पिता पर भी लगा था कलंक

उस रिपोर्ट में प्रदीप कुमार के पिता का भी जिक्र था। ऐसा कहा गया था कि प्रदीप के पिता को भी 1990 में रिश्वतखोरी के आरोप में एक अतिरिक्त न्यायाधीश की सेवा से निलंबित कर दिया गया था। हालांकि अब हाई कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद प्रदीप जज साहब बनने से बस एक कदम ही दूर हैं। चरित्र सत्यापन सहित सभी औपचारिकताएं पूरी होने पर, याचिकाकर्ता को 15 जनवरी 2025 से पहले नियुक्ति पत्र जारी किया जा सकता है।

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