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झोपड़े में सरकारी स्कूल,थैले में रिकॉर्ड, बर्फीली हवाओं व जंगली जानवरों के खौफ के साये मे पढ़ने को मजबूर नौनिहाल

अबतक इंडिया न्यूज 28 दिसम्बर । राजस्थान के सिरोही जिले की पहचान प्रदेश के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू से होती है और इसी माउंट आबू की तलहटी में बसे एक गांव का सरकारी स्कूल झोपड़े में चल रहा है. बेदर्दी का आलम ये है कि जिस माउंट आबू का पारा दिसंबर में माइनस में पहुंचता है और यहां की बर्फीली हवाएं हाड़ कंपा देती है, उसकी गोद में बसे गांव के बच्चे चारों तरफ से खुले झोपड़े में पढ़ने को विवश हैं.

सिरोही जिला मुख्यालय से महज 30 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत कृष्णगंज के गांव सिमटी खेड़ा फली में झोपड़े में प्राइमरी स्कूल चल रहा है. चारों तरफ जंगल से घिरे पहाड़ी इलाके में विचरण करते वन्यजीवों का खौफ बच्चों को रोजाना सताता है. फिर चार साल में सरकार यहां स्कूल भवन बनाना तो दूर बिजली, पानी और रास्ता भी मुहैया नहीं करा पाई है. जबकि, दो साल पहले स्कूल भवन के लिए नेता यहां शिलान्यास कर चुके हैं. लेकिन, भवन निर्माण के लिए माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य होने से इसकी अनुमति दिलाने में सफल नहीं हो पाई है.

स्कूल रिकॅार्ड भी थैले में रखना पड़ता है

आदिवासी आबादी बाहुल्य सिमटी खेड़ा फली में 14 सितंबर 2021 को राजकीय प्राथमिक विद्यालय स्वीकृत कर उसका संचालन शुरू किया गया था. स्कूल के पास खुद का भवन नहीं होने से यहां के निवासी जेपाराम देवासी ने अपने घर में स्कूल चलाने की अनुमति दी. तीन साल बाद उनके बेटे की शादी होने के बाद उन्होंने स्कूल को खाली करवा दिया. बच्चे कहां पढ़ने जाएं इसको देखते हुए ग्रामीणों झोपड़ा बनाया, जिसमें करीब दो साल से स्कूल चल रहा है. इस बीच 26 अगस्त 2023 को स्कूल भवन का शिलान्यास भी किया गया, लेकिन सामग्री लाने के रास्ते के विवाद में काम अटक गया.

सरकार बदलने के एक साल भी यह विवाद नहीं सुलझने से मासूम बच्चे तपती गर्मी, बारिश में टपकती छत और अब सर्दी में ठिठुरते हुए पढ़ाई को मजबूर है. स्कूल भवन नहीं होने से 67 नामांकन संख्या से घटकर अब 37 तक पहुंच गया है. सिमटी खेड़ा फली के शिक्षक जेठाराम चौधरी ने बताया कि विद्यालय में बिजली, पानी, रास्ता और भवन की समस्या है. यहां शिक्षण के लिए दो शिक्षक कार्यरत है. स्कूल रिकॅार्ड भी थैले में रखना पड़ता है.

बारिश में करनी पड़ती है छुट्टी, कुत्ते कर चुके हमला

स्कूल भवन नहीं होने से मौसम में बदलाव के साथ बच्चों को पीड़ा झेलनी पड़ती है. बारिश होते ही झोपड़ा टपकने के कारण स्कूल की छुट्टी करनी पड़ती है. गर्मी के दिनों में आंधी-तूफान के दौरान झोपड़ा गिरने या बिखरने से हादसे की आशंका के डर से छुटटी करनी पड़ती है. भीषण गर्मी व लू चलने पर भी छुटटी करनी पड़ती है.

अभी सर्दी के मौसम में देर सुबह तक कड़ाके की सर्दी रहती है, जिसमें बच्चे झोपड़े में बैठते ही ठिठुरने लगते हैं. ऐसे में बच्चों के बीमार होने की चिंता रहती है. वन क्षेत्र होने से भालू, तेंदुआ, जंगली कुत्तों समेत अन्य जंगली जानवरों के हमले का खतरा बना रहता है. ऐसे में खुली जगह जंगल में पढ़ाना असुरक्षा का माहौल पैदा करता है.

स्कूल का रिकॅार्ड भी थैले में रखते हैं शिक्षक

झौपडे में चल रहे विद्यालय में पानी, बिजली की कोई सुविधा नहीं होने के कारण विद्यार्थियों को घर से बोतलों में पानी भरकर लाना पड़ता है. अध्यापक जेठाराम चौधरी ने बताया कि बिजली की कोई व्यवस्था नहीं होने से बच्चे भीषण गर्मी से बेहाल हो जाते हैं. स्कूल का रिकॅार्ड उन्हें थैले में रखना पड़ता है, जिसे हर रोज स्कूल लाते और  वापस ले जाते हैं.

ग्रामीणों का कहना है कि महीने भर पहले विद्यालय से कुछ बच्चे पानी पीने के लिए सिमटी फली आए, जहां तीन बच्चों पर कुत्तों ने हमला कर दिया, जिससे बच्चे विद्यालय जाने से कतराते है. स्थानीय विधायक, सांसद, सरपंच को इन सब समस्या से अवगत कराया, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं हो सका.

स्थानीय विधायक हैं मंत्री, लेकिन एक साल से अनुमति नहीं दिला पाए

सिरोही विधानसभा क्षेत्र से जुडे़ इस मामले में स्थानीय विधायक व पंचायती राज विभाग के राज्य मंत्री ओटाराम देवासी अपनी सरकार होने के बावजूद एक साल से वन विभाग से स्कूल निर्माण की अनुमति दिलाने में नाकाम रहे हैं. सिमटी खेड़ा के ग्रामीणों ने यहां तक आरोप लगाया कि चुनाव जीतने के बाद ओटाराम देवासी स्कूली बच्चों का हाल तक पूछने नहीं आएं है.

उधर, सिरोही-जालोर लोकसभा सांसद लुंबाराम चैधरी ने दो दिन पहले दिशा बैठक में इस मामले पर शिक्षा विभाग व वन विभाग के अधिकारियों को खरी-खरी सुनाई थी. जिसके बाद अब इस पर काम होने की उम्मीद जगी है.

वन क्षेत्र होने से अटका है कामः डीईओ

सिमटी खेड़ा फली स्कूल के भवन का बजट मंजूर हो चुका है और काम भी शुरू किया गया था, लेकिन वन विभाग से एनओसी नहीं मिलने से काम अटक गया. इसकी अनुमति के लिए लगातार अधिकारियों से पत्र व्यवहार किया जा रहा है.
-जितेंद्र लोहार, जिला शिक्षा अधिकारी, सिरोही

इको सेंसेटिव जोन का मामला हैः डीएफओ

जहां स्कूल के लिए जमीन चिन्हित है, वह क्षेत्र इको सेंसेटिव जोन है. शिक्षा विभाग को जमीन के लिए फार्म भरने के लिए पत्र लिखा था. इको सेंसेटिव से जुडे़ मामलों के निस्तारण के लिए जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित कमेटी में फैसला लिया जाता है, जिसमें अनुमति संभव है- नंदलाल प्रजापत, डीएफओ, माउंट आबू

 

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