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अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव में चल गया ‘ट्रंप’ कार्ड, नहीं चला कमला हैरिस का जादू, जीत को ओर डोनाल्ड

अबतक इंडिया न्यूज 6 नवंबर US Election अमेरिकी चुनाव के जो परिणाम आ रहे हैं, उसमे इलेक्टोरल वोटों की गिनती में रिपब्लिक पार्टी के डोनाल्ड ट्रंप डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रेसीडेंट कैंडीडेट कमला हैरिस से काफी आगे निकल गए हैं. सुबह 11 बजे तक की खबरों के अनुसार कमला हैरिस को210 इलेक्टोरल वोट मिले हैं तो ट्रंप को 246. इलेक्टोरल वोट काफी मायने रखते हैं. कुल 538 इलेक्टोरल वोटों में जो 270 वोट पा जाएगा, उसको बहुमत मिल जाएगा. तो जानते हैं कि इलेक्टोरल वोट क्या हैं और पब्लिक वोटों से इनका क्या नाता है या नहीं है.

अमेरिका के इस सर्वोच्च पद के लिए जनता सीधे राष्ट्रपति नहीं चुनती है, बल्कि इसके लिए इलेक्टोरल वोट काम करता है, जो इलेक्टोरल कॉलेज से मिलकर बनता है.

क्या है इलेक्टोरल कॉलेज
इलेक्टोरल कॉलेज असल में एक बॉडी है, जो जनता के वोट से बनती है. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि जनता के वोट से अधिकारियों का एक समूह बनता है, जो इलेक्टोरल कॉलेज कहलाता है. ये इलेक्टर्स होते हैं और मिलकर राष्ट्रपति चुनते हैं. उप-राष्ट्रपति भी यही बॉडी चुनती है.

इलेक्टोरल कॉलेज अलग तरह से काम करता है
इसमें कुल 538 सदस्य होते हैं लेकिन हर स्टेट की आबादी के हिसाब से ही उस स्टेट के इलेक्टर्स चुने जाते हैं. यानी अगर कोई स्टेट बड़ा है, तो उससे ज्यादा इलेक्टर चुने जाएंगे ताकि वो अपनी आबादी का प्रतिनिधित्व सही तरीके से कर सकें. जैसे कैलिफोर्निया की आबादी ज्यादा हैं इसलिए वहां 55 इलेक्टर हैं. वहीं वॉशिंगटन डीसी में केवल 3 ही सदस्य हैं, जो राष्ट्रपति चुनने में रोल अदा करेंगे.

किस तरह का गणित लगाती हैं पार्टियां
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए 270 या उससे ज्यादा वोटों की जरूरत होती है. किसी राज्य में जो भी पार्टी जीतती है, सारे इलेक्टर्स उसी के हो जाते हैं. यही वजह है कि अमेरिका में सारे राज्यों पर फोकस करने की बजाए उम्मीदवार कुछ खास-खास राज्यों पर फोकस करता है ताकि अगर उसकी पार्टी जीते तो इलेक्टोरल कॉलेज में उसकी सदस्य संख्या ज्यादा हो जाए. ऐसे में वो राष्ट्रपति पद के ज्यादा करीब होता जाता है.

लोकप्रियता जीत की गारंटी नहीं 
यही वजह है कि वोटरों के बीच ज्यादा लोकप्रिय होने के बाद भी ये पक्का नहीं है कि उम्मीदवार प्रेसिडेंट बन ही जाएगा. अगर उसे इलेक्टोरल कॉलेज में 270 वोट नहीं मिल सके तो हार तय है. जैसे कि पिछले चुनाव में भी हुआ था, जब हिलेरी को वोटर्स से ज्यादा प्यार मिला लेकिन वे जीत नहीं पाईं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में पिछले पांच चुनावों से लगातार यही ट्रेंड चल रहा है.

क्या हैं स्विंग स्टेट 
इसके अलावा कई स्विंग स्टेट भी होते हैं, जहां किसी एक पार्टी का गढ़ नहीं, बल्कि मत बदलते रहते हैं. इस बार कांटे की टक्कर के बीच यही स्टेट बड़ी भूमिका निभाएंगे. इनमें जॉर्जिया, टेक्सस, ओहियो, विस्कोनिस, मिनिसोटा, मिशिगन, पेंसिलविनिया, फ्लोरिडा, एरिजोना और नेवादा राज्य शामिल हैं.

कहां कितने वोट हैं 
वैसे ये भी देखना अमेरिकी चुनावों को समझने में मदद कर सकता है कि किस राज्य में कितने इलेक्टोरल वोट हैं. सबसे पहले बात करते हैं कैलीफोर्निया की. यह 55 इलेक्टोरल वोटों के साथ सबसे ऊपर है, यानी सबसे अहम है. टेक्सास में 38 वोट हैं. फ्लोरिडा और न्यूयॉर्क दोनों के पास 29 वोट हैं, जो कुल मिलाकर 58 हैं. इलिनोइस और पेन्सिल्वेंनिया के पास 20-20 वोट हैं. ओहियो भी अहम राज्य है, जहां 18 वोट हैं. जॉर्जिया और मिशिगन में 16-16 वोट होते हैं. नॉर्थ कैरोलिना में 15 इलेक्टोरल वोट आते हैं. न्यू जर्सी में 14, जबकि वर्जीनिया में 13 वोट हैं.

इन राज्यों के हिस्से क्या?
अब बात करके हैं पॉलिटिकल हेडक्वार्टर वॉशिंगटन की तो यहां 12 इलेक्टोरल वोट हैं. अरिजोना, इंडियाना, मैसाचुसेट्स और टेनेसी में 11-11 वोट आते हैं. इसी तरह से मेरीलैंड, मिनेसोटा, मिसौरी और विंस्कॉसिन में कुल 40 इलेक्टोरल वोट हैं. अलबामा, कोलैरेडो और साउथ कैरोलिना में 9-9 वोट हैं. केंटकी और लूसियाना में कुल 16 इलेक्टोरल वोट हैं.

कनेक्टिकट, ओक्लाहोमा और ओरेगन में बराबरी से 21 वोट बंटे हुए हैं. अरकंसास, लोवा, कंसा, मिसिसिपी, नेवादा और उताह में कुल 36 इलेक्टोरल वोट हैं. न्यू मैक्सिको और वेस्ट वर्जीनिया में 5-5 वोट हैं. हवाई, न्यू हैंपशायर और रोड आइलैंड में 4-4 वोट आते हैं. बाकी राज्यों में तीन-तीन के हिसाब से इलेक्टोरल वोट बंटे हुए हैं. इस तरह से कुल 538 वोट होते हैं, जो अमेरिका में राष्ट्रपति कौन बनेगा, ये तय करते हैं.

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