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राष्ट्रीय राजस्थानी परिसंवाद ,राजस्थानी लोक साहित्य का ज्ञान शास्त्रीय ज्ञान से ज्यादा श्रेष्ठ एवं विशाल : प्रो. अर्जुनदेव चारण

अबतक इंडिया न्यूज बीकानेर, 27 अक्टूबर। कालबोध की दृष्टि से राजस्थानी साहित्य को मौखिक एवं लिखित दो अलग-अलग रूपों में परिभाषित किया जाता है। इस दृष्टि से राजस्थानी मध्यकालीन गद्य विधाएं मौखिक साहित्य से जुड़ी हुई हैं, क्योकि मध्यकालीन गद्य कहने की एक अनूठी कला रही है। राजस्थानी लोक साहित्य का ज्ञान शास्त्रीय ज्ञान से ज्यादा श्रेष्ठ एवं विशाल है।
यह विचार कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण ने साहित्य अकादेमी एवं श्री नेहरू शारदा पीठ पीजी महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को आयोजित ‘मध्यकालीन राजस्थानी गद्य परम्परा’ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद में अध्यक्षीय उदबोधन में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि लोक साहित्य का सृजन सप्तऋषियों ने किया था। जिसे लोक ने सहज रूप से स्वीकार किया, जो अपने आप में अद्भुत है।
राष्ट्रीय परिसंवाद संयोजक डाॅ. प्रशांत बिस्सा ने बताया कि उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित विद्वान डॉ. लक्ष्मीकांत व्यास थे। उन्होंने कहा कि मध्यकालीन राजस्थानी गद्य परम्परा एक समृद्ध एवं अनूठी परम्परा है। जिसे आधुनिक गद्य का आधार स्तंभ कहा जा सकता है। इस अवसर पर उन्होंने मध्यकालीन जैन संतों की गद्य रचनाओं की विवेचना करते हुए बालावबोध का महत्व उजागर किया।


उदघाटन समारोह कवि-आलोचक डाॅ.अर्जुनदेव चारण एवं मधु आचार्य आशावादी का नेहरू शारदापीठ संस्थान द्वारा अभिनंदन किया गया।
प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। संगोष्ठी संयोजक डॉ. प्रशांत बिस्सा ने स्वागत उदबोधन प्रस्तुत किया। उदघाटन सत्र का संचालन डाॅ. गौरीशंकर प्रजापत ने किया।
प्रथम तकनीकी सत्र डाॅ. गीता सामौर की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। प्रथम सत्र में श्रीमती संतोष चौधरी ने मध्यकालीन राजस्थानी बात साहित्य एवं डाॅ.गौरीशंकर प्रजापत ने मध्यकालीन राजस्थानी विगत साहित्य विषयक आलोचनात्मक पत्र प्रस्तुत किये।
द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता कवि-आलोचक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने की। इस सत्र में डाॅ.सत्यनारायण सोनी ने मध्यकालीन राजस्थानी ख्यात साहित्य एवं डाॅ. नमामी शंकर आचार्य ने मध्यकालीन राजस्थानी वारता साहित्य विषयक आलोचनात्मक शोध पत्र प्रस्तुत किये।
राष्ट्रीय परिसंवाद का समापन समारोह के मुख्य अतिथि डाॅ.मदन सैनी ने थे। उन्होंने कहा की मध्यकालीन राजस्थानी गद्य परम्परा हमारी अनमोल धरोहर है। जालौर महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ.अर्जुनसिंह उज्जवल ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि राजस्थानी में युवाओं का भविष्य सुरक्षित है। इसलिए ही आज का युवा राजस्थानी भाषा साहित्य के प्रति मन से समर्पित होकर सृजन कर रहा है। अंत में डाॅ. प्रशांत बिस्सा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस अवसर डॉ. ब्रज रतन जोशी, राजेन्द्र जोशी, कमल रंगा, धीरेन्द्र आचार्य, नगेंद्र किराड़ू, शंकरसिंह राजपुरोहित, हरीश बी. शर्मा, डाॅ.रामरतन लटियाल, डाॅ. हरिराम बिश्नोई, राजेन्द्र स्वर्णकार, डॉ. रेणुका व्यास, प्रशांत जैन, नीतू बिस्सा, समीक्षा व्यास, मनीषा गांधी, राजकुमार पुरोहित, अमित पारीक, मुकेश पुरोहित सहित अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार एवं राजस्थानी भाषा-साहित्य प्रेमी मौजूद रहे।

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